ओ बंदा रे में तो तेरे पास में ……

Mahesh Sharma
miracle

ओ बंदा रे में तो तेरे पास में ..

आज से दो दशक पहले जब पहली बार ये एहसास हुआ था , तभी से एक अलग तरह कि  सोच बनी | लेकिन जीवन के सफर में कई बार उस सोच को दबाया गया, गलत ठहराया गया | डराकर , चमत्कार दिखाकर इस बात पर विश्वास दिलवाने की कौशिक्ष की गयी  कि पूजा, मूर्तियाँ, ग्रंथ, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च , तीर्थस्थान, उपाय, rituals के बिना तुम ठीक से नहीं जी सकते | पंडित, गुरु, साधु, पहुंचे हुए लोग, सभी ने इस बात को और पक्का किया कि  डर कर जीना सीखो | और यहाँ तक कि वो लोग जो खुद को बहुत advance मानते थे और इस बातों को backward और superstition का नाम देते थे वो भी जब लगातार असफलता के दौर से या किसी शारीरिक disease से गुजर रहे होते थे तो कहीं न कहीं डर से इन बातों को मानने लगे थे |

लेकिन मुझे  फिर भी लगता था कि कहीं कुछ कमी है  | कहीं कुछ खोया हुआ सा है  | कहीं कुछ था जो समझ नहीं या रहा है | 

और फिर एक दिन वो सारी कमियाँ दूर हो गयी |  सारा confusion हट गया, सब |  सब कुछ साफ-साफ दिखने लगा | और उस दिन से जब से अपने अंदर देखना शुरू किया , तब से सब कुछ शीशे कि तरह साफ है | जब से ये समझ आया है कि सबकुछ अंदर ही है और वहीं से बाहर का निर्माण कर रहा है , तब से जिंदगी को देखने का नजरिया पूरी तरह से बदल गया है  और ये वाक्य मेरे लिए ब्रह्म वाक्य बन गया कि 

“हमारी बाहरी दुनिया, हमारी अंदर कि दुनिया का सटीक प्रतिबिंब  है “

 

Our Outside (World) is the Exact Reflection of 

Our Inside (World).

सब कुछ अन्दर है।  सब कुछ हमारे पास है।  कहीं और जाने की ज़रुरत नहीं ।  डरने की ज़रुरत नहीं । दोहरी ज़िन्दगी जीने की ज़रुरत नहीं |

जरूरत है तो सिर्फ विश्वास की |

विश्वास अपने ऊपर | विश्वास प्रकृति के ऊपर | विश्वास जो हो रहा है वो अच्छे के लिए हो रहा है, इसके ऊपर | विश्वास अपने कर्मों पर | विश्वास अपने मूल स्वरूप पर | विश्वास प्रकृति के मूल सिद्धांतों पर | विश्वास उस सार्वभौमिक consciousness पर | 

और जितना ये विश्वास बढ़ता जाएगा उतनी ज्यादा clarity आती जाती है | उतना डर काम होता जाता है | उतना आप खुद के नजदीक होते चले जाते हो | और उतना बाहर से ध्यान हटकर अंदर कि तरफ लगने लगता है |

और जब Raaz-2 का ये गाना आया तब ऐसा लगा जैसे इस अभिव्यक्ति को, इस अभूतपूर्व एहसास को, इस गहरे अनुभव को व्यक्त करने के लिए सटीक शब्द मिल गए हैं | जितनी स्पष्टता के साथ इस phenomenon  को इस गाने के lyrics ने व्यक्त किया है वो मैं आज तक कहीं नहीं पाया |

और इसी लिए मेरे लिए इस गाने के lyrics एक मील का पत्थर साबित हुए और ये आज भी मुझे उतनी ही क्लेरिटी और दिशा देते  हैं जो ये इस गाने के release के वक्त (2009) में देते थे |  यही वजह है कि मेंने  इन अद्भुत शब्दों को अपने इस ब्लॉग पोस्ट के जरिए और लोगों से भी शेयर करने का फैसला लिया |  न जाने किसके लिए ये एक  “Eureka Moment” साबित हो और उसकी जिंदगी को एक ठोस दिशा मिल जाए, जैसे मुझे मिली | 

 

बंदा रे में तो तेरे पास में ……

 
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे में तो तेरे पास में 
न तीरथ में न मूरत में न एकांत निवास में 
न मंदिर में न मस्जिद में न काबे कैलाश में 
में तो तेरे पास में बन्दे, में तो तेरे पास में 
 
खोजी है तुरत मिल जाऊं एक पल की तलाश में 
कहत कबीर सुनो भाई साधो में तो हूँ विश्वास में। 
 
ओ  बंदा रे में तो तेरे पास  में ……
ओ  बंदा रे में तो तेरे पास  में ……
 
न में जप में, न में तप में, न भरत उपास में 
न में क्रिया करम में रहता न ही जोग संन्यास में । 
 
न हीं प्राण में न हीं पिंड में, न ब्रह्माण्ड आकाश मे
न में  प्रकृति प्रवर गुफा में, न ही स्वास की सांस में । 
 
खोजी है तुरत मिल जाऊं एक पल की तलाश में 
कहत कबीर सुनो भाई साधो में तो हूँ विश्वास में। 
 
ओ  बंदा रे में तो तेरे पास  में ……
ओ  बंदा रे में तो तेरे पास  में ……

Song source : “O Banda Re” from Raaz 2. Sung by : Krishna Beura. Music : Gaurav Dasgupta. Lyrics : Sayeed Quadri

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